EARLY FORM, TECHNIQUE, SUBJECT AND CONTEMPORARY CHANGED DIMENSIONS OF KALAMKARI FOLK PAINTING

EARLY FORM, TECHNIQUE, SUBJECT AND CONTEMPORARY CHANGED DIMENSIONS OF KALAMKARI FOLK PAINTING

कलमकारी लोक चित्रकला का प्रारंभिक स्वरूप, तकनीकी, विषय एवं समकालीन परिवर्तित आयाम

Siddharth Tripathi 1

 

1 Research Scholar, Department of Painting - Sha. Hamidia Arts and Commerce College, Bhopal, (M.P.), India

 

A picture containing logo

Description automatically generated

ABSTRACT

English: Kalamkari folk painting is a traditional art style of India, developed by rural and tribal communities over generations. This painting expresses social, cultural and religious sentiments, and uses natural colors, simple lines and symbolic depictions. Kalamkari is popular in fashion and interior design today. Digital printing and the use of chemical colors have affected its traditional purity, but many artisans are engaged in keeping the natural and handmade techniques alive.

 

Hindi: कलमकारी लोक चित्रकला भारत की पारंपरिक कला शैली है, जो ग्रामीण और जनजातीय समुदायों द्वारा पीढ़ियों से विकसित की गई है। यह चित्रकला सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करती है, और इसमें प्राकृतिक रंगों, साधारण रेखाओं और प्रतीकात्मक चित्रण का उपयोग होता है।कलमकारी आज फैशन और इंटीरियर डिज़ाइन में प्रचलित है। डिजिटल प्रिंटिंग और रासायनिक रंगों के उपयोग ने इसकी पारंपरिक शुद्धता को प्रभावित किया है, लेकिन कई कारीगर प्राकृतिक और हस्तनिर्मित तकनीकों को जीवित रखने में जुटे हैं।

 

Received 05 May 2025

Accepted 02 June 2025

Published 23 June 2025

Corresponding Author

Siddharth Tripathi, drsiddharthtripathi@gmail.com

 

DOI 10.29121/ShodhShreejan.v2.i1.2025.17  

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

Copyright: © 2025 The Author(s). This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.

With the license CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download, reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work must be properly attributed to its author.

 

Keywords: Kalamkari, Folk Painting, Natural Colour, Technique, Community, Andhra Pradesh क़लमकारी, लोक चित्रकला, प्राकृतिक रंग, तकनीकी, समुदाय, आंध्रप्रदेश

 

 

 

 


1.  प्रस्तावना

चित्र 1

चित्र 1 Ganesh’s Radiance: Kalamkari painting by Sudheer

 

कलमकारी चित्रकला भारत की सबसे प्रमुख लोक कलाओं में से एक है जिसका उद्गम आंध्रप्रदेश में माना जाता है कलमकारी शब्द का अगर संधि विच्छेद करें तो कलम+कारी, कलम का अर्थ होता है कलम/पेन एवं कारी का मतलब होता है हाथ से बनाया हुआ। जो हाथ से बनाई हुई कलाकृति को कलमकारी कहा गया। कलमकारी शब्द का प्रयोग कला एवं निर्मित कपड़े दोनों के लिए किया जाता है। मुख्य रूप से यह कला आंध्र प्रदेश के अलावा ईरान में प्रचिलित है।Bhanavat (1974) भारत में कलमकारी के दो रूप प्रधान रूप से विकसित हुये जिसमें मछिलिपट्टनम कलमकारी और श्रीकलाहस्ति कलमकारी हैं। यह प्रदेश के दो शहरों के नाम हैं, जहां पर क़लमकारी चित्र बनाने वाले बहुतायत चित्रकार रहते हैं और अपना सृजन संबंधी कार्य करते हैं। मछिलिपट्टनम की चित्रकला फ़ारसी से प्रभावित मानी जाती है जिसमें ब्लॉक प्रिंटिंग की तरह काम किया जाता है। जबकि श्रीकलाहस्ति में होने वाले कार्यों में प्रमुखतः चित्रकारी ही है। इसमें रामायण और महाभारत महाकाव्यों और पुराणों की कहानियाँ एक निरंतर कथा के रूप में पेंट की जाती हैं, जिसमें प्रत्येक मुख्य प्रसंग एक अलग आयत में रखा जाता है। कभी-कभी कहानियों के छोटे प्रसंग भी पेंट किए जाते हैं। पेंटिंग के नीचे उसका अर्थ स्पष्ट करने हेतु उससे सम्बंधित तेलुगु की कविताएँ भी दी जाती हैं। कहानियों को दृष्टान्त देनेवाले प्रारूप में संक्षिप्त करने के लिए बहुत हद तक काल्पनिक और तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है। कलमकारी पेंटिंग्स चित्रात्मक कहानी को कहते हैं। कलमकारी को एक उपचारकारी कपड़ा माना जाता है, क्योंकि रंग, रूपांकन और जादुई रूपों का वर्णन एक ऐसी आभा बनाते हैं जो किसी व्यक्ति को ठीक कर देती है।

 

2.  इतिहास

इतिहास कि बात करेंतो कलमकारी चित्रण की शुरुआत 13वीं शताब्दी के आसपास माना जाती है जिसके पारंपरिक उत्थान का श्रेय यहाँ के चितकठी समुदाय के लोगों को जाता है। इस समुदाय का प्रमुख कार्य गांव-गांव में जाकर महाभारत, रामायण व हिंदूदेवी-देवताओं की कहानियों से लोगों को अवगत कराना था, उनकी इस शैली में चित्रकला के साथ-साथ संगीत कला, रंग-मंचीय कला आदि कलाएँ शामिल थीं।Ramani (2021) अपनेकार्यको नई दिशा देने के लिए इस विधा को उन्होंने बड़े पर्दों पर चित्रकारी के माध्यम से प्रदर्शित किया, जिसमें देवी देवताओं की कहानियों के साथ-साथ अन्य कथाओं को भी चित्रित किया। इन चित्रों को इतनी बारी की से बनाया जाता था कि सालों बाद जब आंध्रप्रदेश के गोलकुं डा के शासकों ने इसे देखा एवं मुआयना किया तो इसे अपनाकर प्रोत्साहन दिया। मंदिरों मेंभी इन चित्रकारों द्वारा चित्रों में दर्शायी गई कहानियों का प्रयोग होनेलगा जिसेआम जनों नेबहुत पसंद किया तथा बाद मेंब्रिटेन सरकार केआते-आतेयह कला संपूर्णविश्व मेंविख्यात हो गई।

 

 

 

 

 

3.  तकनीक

चित्रकारी की तकनीक को जानने के पहले आवश्यक होगा यह जानना कि कपड़े को कैसे तैयार किया जाता है। ज्ञात तथ्यो, संवादों और साक्षात्कार के माध्यम से पता चलता है कि कपड़ा तैयार करने में लगभग तेईस चरणों की प्रक्रिया पूर्ण करनी होती है। सबसे पहले तो सफेद सूती कपड़े को धोने के बाद उसे सुखाया जाता है फिर उसे गाय के गोबर के एक पतले से गोल में डाला जाता है कुछ देर उसे वहीं छोड़कर बाद में फिर सुखाया जाता है। जब तक वह कपड़ा सूख रहा होता है हम दूसरा घोल तैयार करते हैं जिसमें आँवला (मायरोबालन) या हरड़ को उसको रात भर पानी में भिगो के रखते हैं और भैंस के दूध को मिलाकर

चित्र 2

चित्र 2  https://www.insightsonindia.com/indian-heritage-culture/indian-paintings/folk-paintings/kalamkari/     

 

एक मिश्रण तैयार किया जाता है इस मिश्रण में फिर कपड़े को रात भर रखा जाता है अगली सुबह उसको निकालकर पुनः सुखाया जाता है तब हमारा कपड़ा चित्र बनाने के लिए तैयार अवस्था में होता है।Kumar (2020)

 चित्र 3

चित्र 3 https://www.joshuahs.in/blogs/news/everything-you-need-to-know-about-kalamkari-prints

 

कपड़ा तैयार करने के बाद बारी आती है चित्र की रूपरेखा तैयार करने की, उसके लिए अंगूर की बेल या इमली की लकड़ी को जलाकर चारकोल स्टिक बनाई जाती है जिसकी सहायता से हम रेखाओं के माध्यम से चित्र रचना प्रारंभ करते हैं यह भी कलाकार खुद ही तैयार करता है। यह चित्र का प्रारंभिक स्वरूप होता है जिसे चित्रकार का प्रथम चरण भी कह सकते हैं। इसके अलावा आवश्यकता होती है कलम की, उसे भी कलाकार खुद ही तैयार करता है। जिसके लिए वह बांस का प्रयोग करता है इसे किसी नुकीले औजार से धारदार कलम का आकार देता है कलम की नोक के थोड़े ऊपर सूती कपड़ा या सूती धागे से एक गठरी तैयार करता है जिसको रंग में डुबाकर तुरंत निकाल लेने पर भी रंग उस गठरी के माध्यम से नोक की ओर रिसता रहता है रुका रहता है जिससे चित्रकार को बार-बार रंग के पात्र में कलम को नहीं डुबोना पड़ता।

 चित्र 4

चित्र 4

 

चित्रकार के लिए तीसरी सबसे महत्वपूर्ण वस्तु होती है रंग, यहां पर वनस्पति और खनिज रंगों का प्रयोग किया जाता है जो कलाकार खुद ही एकत्रित करके उसका निर्माण करता है। इसके रंग वनस्पति और खनिज स्रोतों से प्राप्त होते हैं। मुख्य रंगों में काला, लाल, नीला और पीला शामिल हैं। लाल रंग का उपयोग अधिकतर बैकग्राउंड के लिए होता है। भगवानों को नीले और राक्षसों और दुष्ट किरदारों को लाल और हरे रंग से पेंट किया जाता है। पीले का उपयोग स्त्रियों और आभूषणों के लिए किया जाता है। फिटकरी का उपयोग रंगों को पक्का करने के लिए किया जाता है।

 चित्र 5

चित्र 5

 

रूपरेखा के पहले सबसे जरूरी होता है चित्र का विषय, प्रारंभिक तौर पर देवी देवताओं के चित्रण किया जाते थे बाद में समय के अनुसार पक्षियों, बंदरों, गिलहरियों आदि का चित्रण किया जाने लगा साथ ही फूल, मोर और हंस आदि के चित्र बहुतायत मात्रा में चित्रित किए गए। पर्दों के अलावा चित्रों को महलों और घरों में टांगने के लिए भी बनाए जाने लगे।Krothapally (2020) एक चित्रकार से संवाद के दौरान पता चला कि उनका कहना था कि हमनें कभी रामायण-महाभारत का अध्ययन नहीं किया परन्तु वाचिक परंपराओं से सुनते हुए उन कथाओं का अनुसरण किया। जिसका चित्रण हम अपनी कलमकारी चित्रकला में करते हैं, रामायण और महाभारत के अलावा लक्ष्मी-विष्णु, सरस्वती, गणेश, राधा-कृष्ण और गायों का चित्रण किया किया जाता है। इसके अलावा शिव-पार्वती को भी बहुतायत मात्रा में चित्रित किया गया। नए परिवेश में गांव के दृश्यों का भी चित्रण काफी सुंदरता पूर्ण किया जाता है।

 

4.  उपसंहार

समय की चाल में चीजों का परिवर्तित होना सामान्य सी बात है किसी भी समय के चित्रों को देखकर उस समय के सामाजिक परिवेश, कलात्मक परिवेश, आर्थिक परिवेश एवं अन्य गतिविधियों का अंदाजा लगाया जा सकता है। कला विषयगत एक वाक्य आता है 'कला ही समाज का दर्पण है' इस बात का आशय है जिस समय की जो कला है वह उस समय के तात्कालिक समाज का आईना है जैसे पुराने समय की जो कला थी वह उस समय के समाज का आईना थी।आज की जो कला है वह आज के तात्कालिक समाज का प्रतिबिंब है। इसी तरह सरलीकृत भाषा में समझें तो शुरुआती कलमकारी चित्रों में जैसे देवी-देवताओं,रामायण महाभारत की कथाएँ आदि का चित्रण ही किया जाता था, मात्र वनस्पति रंगों का प्रयोग किया जाता था, कलम/पेन भी कलाकार स्वयं बनाता था। कपड़े के निर्माण से लेकर रंगों को बनाना हो या कोयले की डंडी (चारकोल स्टिक) तैयार करना।20-21 वीं  शताब्दी आते-आते विषयगत बदलावों से अलावा, तकनीकी, रंग एवं अन्य पृष्ठभूमि सब कुछ ही बदल गया। हाथ से बने सूती कपडे  की जगह कैनवास और हैंडमेड शीट ने ले ली, कोयले की डंडियों की जगह पेंसिल ने ली तो दूसरी ओर वनस्पतिक व खनिज रंगों का स्थान ऐक्रेलिक रंगों ने ले ली।Ministry of Culture. (n.d.) विषयों में भी भारी बदलाव देखने को मिला, समकालीन परिस्थितियों में उन्हीं विषयों को विशेष महत्व दिया जा रहा जो जनमानस को ज़्यादा पसंद आ रहे। एक बड़े परिवर्तन के रूप में उभरा चित्रण का बाजारीकरण या सामान्यीकरण, पहले जो चित्र बड़े परदों पर, मंदिरों की दीवारों पर जनमानस की चेतना को जगाने के लिए बनाए जाते थे वह अब साड़ियों,हैं डमेड बैग, बर्तनों एवं अन्य गृहशोभा संबंधित वस्तुओं पर बनाये जाने लगे। जिससे विषय और तकनीकी दोनों का स्वरूप परिवर्तित हुआ। आने वाले समय में कला को बढ़ावा देने के क्रम में इन चित्रों को वैश्विक पटल पर विशेष स्थान मिलेगा।Drishti IAS. (n.d.)

 

CONFLICT OF INTERESTS

None. 

 

ACKNOWLEDGMENTS

None.

 

REFERENCES

Bhanavat, M. (1974). Folk Art: Values and Context. Bharatiya Lok Kala Mandal.

Drishti IAS. (n.d.). Indian Art – Part 7.  

Krothapally, S. (2020). Kalamkari: The Strokes of Elegance [Kindle Edition].

Kumar, A. (2020). Indian Folk and Tribal Art. B.R. Publisher.

Ministry of Culture. (n.d.). Kalamakaarai. Indian Culture.  

Ramani, S. (2021). Kalamkari & Traditional Design Heritage of India. Wisdom Tree.

 

Creative Commons Licence This work is licensed under a: Creative Commons Attribution 4.0 International License

© ShodhShreejan 2025. All Rights Reserved.