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FOLK AND TRIBAL ARTS AND LITERATURE COVERED IN INDIAN TRADITION
भारतीय परम्परा से आवृत्त लोक एवं जनजातीय कलाएं और साहित्य
1 Ph.
D Scholar, Drawing and Painting, Government Maharani Lakshmi Bai College Girls
PG College, Indore, Madhya Pradesh, India
|
ABSTRACT |
||
English: India's
cultural heritage and its diversity have fascinated people for centuries,
this land is home to unique and rich forms of folk and tribal arts and
literature. Indian folk and tribal arts and literature are not only known for
their colourfulness and diversity, but they also represent our cultural
traditions and collective memories. These arts and literature reflect the
soul of Indian society and help in understanding its depths. Sanskrit has a
wonderful amalgamation of antiquity and modernity or connects the past to the
present with the help of invisible bridges which provide stability to the
mind and social fabric of a person and open the path of praise by benefiting
character and identity. Therefore, culture is directly related to society. It
is said that culture is a quality and consciousness which gets expanded by
being represented through literature and art. Facts are clear in literature
but in art they are ascertained in a subtle form. Art provides visual image
to the thoughts and feelings of literature. Thoughts are clearly known
through words and lines. Therefore, the Uddhav center of literature and art
is the same. The objective of this research paper is to analyze the depth and
importance of folk and tribal arts and literature in Indian tradition. Hindi: भारत की
संस्कृति
धरोहर और
उसकी
विविधता ने सदियों
से लोगों को
आकर्षित
किया है, यह
भूमि लोक और
जनजाति
कलाओं और
साहित्य के
अद्वितीय और
समृद्ध
रूपों का घर
है भारतीय
लोक और
जनजाति
कलाएं और
साहित्य न
केवल अपनी
रंगीनता और
विविधता के
लिए जाने
जाते हैं , बल्कि
वह हमारे
संस्कृति
परंपराओं और
सामूहिक
स्मृतियों
का भी
प्रतिनिधित्व
करते हैं यह
कलाएं और
साहित्य
भारतीय समाज
की आत्मा को प्रतिबिंबित
करते हैं और
उसकी
गहराइयों को
समझने में
मदद करते हैं ,संस्कृत
में
प्राचीनता
और नव्यता का
अद्भुत समावेश
है या अदृश्य
के पुलों के
सहारे अतीत
को वर्तमान
से जोड़ती है
जो व्यक्ति
के मन व
सामाजिक ताने-बाने
को स्थिरता
प्रदान करती
है तथा चरित्र
व अस्मिता को
लाभान्वित
कर प्रशस्ति
के पथ खोलती
है. |
|||
Received 20 October 2024 Accepted 11 November 2024 Published 19 November 2024 Corresponding Author Mayuri
Nema, nemaartistmayuri78@gmail.com
DOI 10.29121/ShodhShreejan.v1.i1.2024.8 Funding: This research
received no specific grant from any funding agency in the public, commercial,
or not-for-profit sectors. Copyright: © 2024 The
Author(s). This work is licensed under a Creative Commons
Attribution 4.0 International License. With the
license CC-BY, authors retain the copyright, allowing anyone to download,
reuse, re-print, modify, distribute, and/or copy their contribution. The work
must be properly attributed to its author. |
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Keywords: Folk Art, Tribal Art, Literature, Society, Art, लोक
कला, जनजाति कला, साहित्य, समाज, कला |
भारतीय
परम्परा से
आवृत्त लोक
एवं जनजातीय कलाओं
और साहित्य का
विशेष
महत्त्व है।
ये कलाएं और
साहित्य
भारतीय
संस्कृति के
विविध रंगों
और धरोहरों को
संजोए हुए
हैं। भारत की
विविधता और
बहुलता का
प्रतिबिंब
लोक और
जनजातीय कला
और साहित्य
में स्पष्ट
दिखाई देता
है। लोक और
जनजातीय
कलाएं और
साहित्य
हमारी
सांस्कृतिक
पहचान का एक
महत्वपूर्ण
हिस्सा है ,यह
न केवल हमारे
अतीत की झलक
प्रस्तुत
करते हैं
बल्कि
वर्तमान और
भविष्य की
पीडिया के लिए
भी प्रेरणा
स्रोत है इन
कलाओं और
साहित्य में
ग्रामीण और
जनजातीय समाज
की सादगी प्राकृतिक
सौंदर्य
धार्मिक
विश्वास और
सामाजिक
संरचना का
जीवंत चित्रण
होता है Anand (n.d.)
मनुष्य
के जीवन के
शुरुआती चरण
में ही मनुष्य
ने सौंदर्य को
आत्मसात कर
विविध कलाओं
को जन्म दिया
। लोक कला
विशिष्ट रूप
से घर आंगन की
दीवार पर
सीमित नहीं
रही जबकि लोक
व जनजाति कलाएं
समाजनिष्ठ होकर
सहज ,सुलभ और सरल
जादूई रूप लिए
प्रत्येक युग
में शहरी
परिवर्तनों
के चलते अपनी
पहचान बना रही
है लोक कलाएं
एवं आदिम
कलाएं दोनों
ही उपयोगिता
वादी, सामाजिक,
जादूई और
धार्मिक
विशिष्ठताओं
में साम्य रखते
हुए वेभिन्न
प्रस्तुत करती
है। यह कलाएं
और साहित्य न
केवल मनोरंजन
के साधन है बल्कि
समाज की मूल्य
विश्वास और
जीवन दृष्टि को
भी अभिव्यक्त
करते हैं
भारतीय
लोक कलाएं
जैसे मधुबनी ,वर्ली
और पाट चित्र
अपने विशेष
शैली और रंगों
के लिए विश्व
प्रसिद्ध है
इसी प्रकार
लोक संगीत और
नृत्य जैसे
भांगड़ा, गरबा
भारतीय समाज
की जीवंतता और
विविधता को दर्शाते
हैं जनजातीय
साहित्य में
मौखिक और लिखित
दोनों रूप
शामिल है, मौखिक
साहित्य में
लोकगीत, गाथा
आदि शामिल है
जो पीढ़ी दर
पीढ़ी मौखिक
रूप से
प्रेषित होती
है लिखित
साहित्य में
गोंड, भील
चित्रों के
माध्यम से
प्रस्तुत
होता है । Das (1987)
जनजाति
कला मूल रूप
से उस देश की
कला है जो अपना
नाम किसी विशेष
काम को लेकर बनाए
हुए हैं, जेसे बाग
में बाघ
प्रिंट, ग्वालियर
में गुड़िया
शिल्प ,झाबुआ
में गुड़िया
शिल्प, भोपाल
में जरी कढ़ाई
नीमच में
नांदना
प्रिंट आदि इस
शोध पत्र का
उद्देश्य
भारतीय
परंपरा से
आवर्त लोक एवं
जनजातीय
कलाओं और
साहित्य की गहराई
और उनके महत्व
का विश्लेषण
करना है यह अध्ययन
न केवल भारतीय
सांस्कृतिक
धरोहर के विभिन्न
पहलुओं को
उजागर करेगा
बल्कि इन
कलाओं और
साहित्य के
संरक्षण और
संवर्धन की
दिशा में
सुझाव
प्रस्तुत
करेगा। Upadhyay (2017)
2. उद्देश्य
इस
शोध का
उद्देश्य
भारतीय
परंपरा से
आवर्त लोक एवं
जनजातीय
कलाओं और
साहित्य का
व्यापक अध्ययन
और विश्लेषण
करना है इस
अध्ययन में
लोक और जनजाति
कला एवं
हस्तशिल्प
कला उनकी
शैलियां, विकास
और
सांस्कृतिक
महत्व का
अध्ययन करना शामिल
है। Gatha (2023)
इस
शोध मे
इन कलाओं के
संरक्षण और
संवर्धन के
लिए उपाय एवं
सुझाव देना और
जनजातीय कलाओं
का आर्थिक
विश्लेषण
करना जिसमे इन
कलाओं के
माध्यम से
रोजगार और
आर्थिक विकास
के अवसर शामिल
है , इन कलाओं को
वैश्विक स्तर
पर पहचान
दिलाने के लिए
मध्य प्रदेश
सरकार एवं
हस्तशिल्प
विभाग द्वारा
कई रणनीतियां
एवं
योजनाओं का वर्णन
शामिल है इस
शोध के माध्यम
से भारतीय समाज
की विविधता और
उसकी गहरी
जड़ों को
उजागर करने का
प्रयास किया
जाएगा।यह
अध्ययन न केवल
सांस्कृतिक
दृष्टिकोण से
महत्वपूर्ण
है, बल्कि
समाजशास्त्रीय,
आर्थिक, और शैक्षिक
दृष्टिकोण से
भी
महत्वपूर्ण
है। भारतीय
संस्कृति की
इस समृद्ध
धरोहर का
संरक्षण और
संवर्धन करना
समय की
आवश्यकता है
ताकि आने वाली
पीढ़ियाँ भी
इससे
लाभान्वित हो
सकें और इसे
आगे बढ़ा
सकें।
3. लोक एवं जनजातीय कला
भारत
की लोक और
जनजाति कलाएं
देश के
विभिन्न हिस्सों
में व्याप्त
है और यह
विभिन्न
जनजातियों और
समुदायों की
सांस्कृतिक
धरोहर का हिस्सा
है। भारत में
अपितु
संपूर्ण मध्य
प्रदेश में
लोक चित्रण
एवं
हस्तशिल्प
कला आकर्षण का
केंद्र है।
4. लोक चित्रकला
भारतीय
लोक चित्रकला
की कई प्रमुख
शैलियों है,
जैसे मधुबनी
(बिहार) वर्ली
(महाराष्ट्र),मंडाना
सांझा इन सभी
हस्तकला में
जो अलग-अलग क्षेत्र
की होती है , इनमे
प्राकृतिक
रंगों का
उपयोग होता है
और यहां
विभिन्न
धार्मिक और
सामाजिक
विषयों पर आधारित
होती है Gupta (2023)
लोक
कला
सामान्यतः
ग्रामीण और
साधारण जीवन से
प्रेरित होती
है। ये कला
साधारण
व्यक्तियों
के जीवन, उनकी
आस्था, संस्कार
और रोजमर्रा
की
गतिविधियों
को अभिव्यक्त
करती है। भारत
के विभिन्न
राज्यों में विभिन्न
प्रकार की लोक
कलाएं
प्रचलित हैं
कुछ प्रमुख
लोक कलाएं
निम्नलीखित
हैं
मंडाना- इस
कला को
प्राचीन भूमि, भित्ति,
अलंकरण की
समृद्ध
लोककला
चित्रकला
विधा मानी
जाती है घर
में शुभ
अवसरों पर तीज,
त्योहारो
व मांगलिक
कार्यक्रमों
आदि पर
मांडने माडे
जाते हैं यह
मांडने विशेष
पर्व आदि तक
सीमित नहीं है
।यह ग्रह द्वार,
भीत्ती, चौखट आदि पर
साज सज्जा
हेतु माडे
जाते हैं इस प्रक्रिया
में सबसे पहले
मकान पर गोबर
से लीप कर
गोलाकार या
चौकोर
मांडने बनाए
जाते हैं फिर
गेरू और
खड़िया से फूल
,पत्ती, स्वास्तिक ,चरण ,चंद्र
,सूर्य
आदि अनेक
आकृति बनाई
जाती है
स्वचित्रांकन
1
(लोकरंग
भोपाल) |
सांझा -
कुंवारी
कन्याओं
द्वारा
सांझा
बनाई जाती है
इस कला को
राजस्थान
में सांझा
, महाराष्ट्र
में गुलाबाई,
हरियाणा
में सांझी
धुंद्हा और
मिथिला प्रदेश
में सांझी की
संज्ञा दी गई
है, मालवा आंचल
में मनाया
जाने वाला सांझा
पर्व
पर अबोध
बालिकाओं और
स्वप्न्यदर्शी
किशोरियों का
कला धर्म माना
जाता है ,देहाती
क्षेत्रों से
लेकर शहरी
इलाकों तक यह पर्व
लोक उत्सव के
रूप में मनाया
जाता है दीवार
पर गोबर से सांझा बनाई
जाती है इसमें
विभिन्न
प्रकार के
चिन्ह जैसे
स्वास्तिक ,चरण ,फूल
,पत्ती
आदि बनाए जाते
हैं तथा सजाने
के लिए गेहूं ,दाल आदि का
उपयोग करते
हैं Naidunia (2023)
मधुबनी चित्रकला- यह
बिहार की एक
प्रसिद्ध लोक
कला है,
जिसमें
प्राकृतिक
रंगों का
प्रयोग करके
कपड़े या
दीवारों पर
चित्र बनाए
जाते हैं। यह
कला धार्मिक
और सामाजिक
कथाओं पर
आधारित होती
है।
वारली चित्रकला -
महाराष्ट्र
के आदिवासी
समुदाय
द्वारा बनाई जाने
वाली यह
चित्रकला
उनके दैनिक
जीवन और प्राकृतिक
परिवेश को
दर्शाती है।
इसमें मुख्यतः
सफेद रंग का
प्रयोग होता
है।
पट्टचित्रा -
ओडिशा और
पश्चिम बंगाल
में प्रचलित
यह कला कपड़े
पर बनाई जाती
है और इसमें
पौराणिक
कथाओं और
धार्मिक
कथानकों का
चित्रण होता
है। Tribal Art’s and Craft of Madhya Pradesh (1996)
लोक
कला में
चिन्हो का
महत्व - लोक
कला एवं
जनजाति कला
में दीवारों
को विभिन्न
प्रतिको से
अलंकृत करने
की परंपरा
बहुत पुरानी
मानी जाती है,
इसके
उद्भव का सही
आकलन करना
बहुत कठिन है
किंतु इतिहास
के अध्ययन से
पता चलता है
कि पूरा पाषाण
काल से
(आदिमानव) के
समय से ही
आकृतियां बनना
प्रारंभ हो गई
थी। इन सभी
प्रतिको का
लंबे समय से
लोक कला में
प्रयोग हुआ
जैसे चंद्रमा,
कलश ,सूर्य
,ओम ,कमल
आदि और उनके
अलग समय के
अनुसार अर्थ
भी अलग अलग
हैं।
भारतीय
हस्तकला एवं
शिल्प -भारत
देश विभिन्न
कला गुण
से साराबोर है, संपूर्ण
भारत एवं मध्य
प्रदेश में
कला के क्षेत्र
में अपनी
उपस्थिति
दर्ज करी है
चाहे वह प्रागैतिहासिक
कालीन कला हो
या समकालीन
कला या फिर
जनसाधारण व
मध्य प्रदेश
के घने जंगलों
में पोषित
जनजातीय कला,
प्रत्येक
कला, में
संपूर्ण
भारतीय शिल्प
कला, कला
संबंधित
विभिन्न
क्षेत्रों
में उत्कृष्ट
प्रदर्शन
करता आया है
राज्य सरकार व
केंद्र सरकार
ने यहां की
जनजाति कला व
लोक कला को प्रोत्साहित
करने के लिए
जनजातीय
संग्रहालय में
विभिन्न
जनजातीय व लोक
कलाओं का
संग्रह किया
है जैसे
गुड़िया कला,
कंगी कला, भेरवगढ़
कला ,बाग
की कला आदि
जनजाति
हस्तशिल्प है-
काष्ठ
कला-
कलाप्रिय
आदिवासी
जनजातियों के
घरों के दरवाजे
प्रवेश द्वार, कपाट
,चौखट आदि
सभी अत्यंत
कलात्मक रूप
से उत्कीर्ण
करने की
परंपरा वर्षो
से चली आ रही
है। दरवाजो पर
ज्यामिति
अलंकरण पशु, पक्षी, विभिन्न
विभिन्न
जनजाति के लोग
जाति के हिसाब
से अपना
अलंकरण चुनते
थे जैसे भील-
गाथाला, गोंड-
खीसरा देव आदि
कंघी-
भारत में कंघी
कला एक अनोखा
एवं रचनात्मक
कार्य है इसका
इतिहास भी 400 से
500 वर्षों
पुराना है ,कंघी
बंजारा जाति
द्वारा
राजस्थान में
की जाती थी
जिसे मालवा में
लाया गया, कंगी
दृढ़ लकड़ी से बनाई
जाती है जिसमें
मुख्याता
चौकोर आकृति
का डिजाइन
बनाया जाता है
मुगलों के समय
सोने और चांदी
के जड़ई कंघी
भी होती थी
जमींदार
घराने की
महिलाएं अलंकरण
कंगी की शौकीन
हुआ करती थी
कंगी को ऐसा
बनाया जाता था
जिसमें ऊपर से
तेल भरकर
जड़ों तक पहुंचा
जा सके
विभिन्न
विभिन्न
अलंकृत कंघी बनाकर
लोगों तक
पहुंचाया
जाता था।
चित्र
2
alibaba.com |
बांस
शिल्प - बांस
की खेती से
बहुत सी
जनजाति अपना
जीवन यापन
करती है, सिवनी,
बालाघाट, मंडला
जबलपुर, सीधी
,झाबुआ ,उमरिया ,शहडोल
आदि मध्य
प्रदेश
क्षेत्र में
फैले
बांस के
जंगलों की
प्राकृतिक
विरासत से
संपन्न है
।बांसोड़, धनुक
वंशकार
बांस कारीगर
के रूप में प्रसिद्ध
है , बांस
से बनाए जाने
वाली वस्तुएं
टकना तुकनी , छटोरी (छाता),बीजना, ग्लास,
झापी(दुल्हन
का सामान
रखने) फूलदान ,बोतल ,चटाई बांस के
उपयोग से
झोपड़ी भी
बनाई जाती है
इस प्रकार
अलग-अलग
क्षेत्र की
लोक कला एवं
हस्तकला अलग
होती है जो
संपूर्ण भारत
देश में पहचान
बनाए हुए हैं।
स्वचित्रांकन
3
(लोकरंग
भोपाल ) |
लोक
एवं जनजातीय
साहित्य
जनजातीय कला
में साहित्य
का
महत्वपूर्ण
योगदान है
इसमें लिखित
एवं मौखिक
दोनों
साहित्य शामिल
है
5. मौखिक साहित्य
जनजाति
मौखिक
साहित्य में
लोकगीत
गाथाएं और कथाएं
शामिल है यह
कथाएं पीढ़ी
दर पीढ़ी ग्रुप
से प्रेषित
होती है इनमें
से कुछ प्रमुख
भील जनजाति की
महाभारत कथा
संथाल के गीत
प्रसिद्ध है लिखित
साहित्य -गोंड
जनजाति के बीच
कवियों ने
अपने संघर्ष
और जीवन
दृष्टि को
लिखित रूप में
प्रस्तुत
किया है जैसे
भील कवि
नंदलाल जोगी
की कविताएं
उनके समाज की
जीवंत और
संघर्ष को
दर्शाती है
जनजाति
संग्रहालय
द्वारा
चौमासा का
प्रकाशन जिसमें
संपूर्ण लोक
कला का कहानी
अनुसार वर्णन
निहित है।
भारत
में
हस्तशिल्प के
संरक्षण और
संवर्धन के
लिए विभिन्न
योजनाएं चलाई
जा रही है कुछ
प्रमुख
योजनाएं
अंबेडकर
हस्तशिल्प
विकास योजना-
इस योजना का उद्देश्य
हस्तशिल्प
कारीगरों को
आर्थिक सहायता
प्रदान करना
हस्तशिल्प
क्लस्टर
विकास योजना-
इस योजना के तहत
कारीगरों के
समूह को
विकसित किया
जाता है इन
समूह को
प्रशिक्षण,
डिजाइन,
विपणन और अन्य
सहायता
प्रदान की
जाती है
मेगा
क्लस्टर
योजना- इसका
उद्देश्य
बड़े पैमाने
पर हस्तशिल्प
क्लस्टरों का
विकास करना
बाबा
साहब अंबेडकर
हस्तशिल्पी
विकास योजना
हस्तशिल्प
कारीगर
कल्याण योजना
6. निष्कर्ष
भारतीय
परंपरा से
आवर्त लोक और
जनजाति कलाएं और
साहित्य
हमारे देश की
सांस्कृतिक
धरोहर का
अनमोल हिस्सा
है, इनका
संरक्षण और
संवर्धन
हमारी
जिम्मेदारी है
ताकि आने वाली
पीढ़ियां भी
इस समृद्ध
विरासत से
लाभान्वित हो
सके इन कलाओं
और साहित्य के
माध्यम से
हमें अपनी
जड़ों और
संस्कृति की गहरी
समझ प्राप्त
होती है जो
हमारे
सामाजिक और सांस्कृतिक
विकास के लिए
अत्यंत
महत्वपूर्ण
है जनजातीय
एवं लोक कला
जीवन को आनंद
प्रदान करती
है व्यक्ति को
व्यक्ति से ,प्रकृति ,समाज से
जोड़ती है
परंपरा और
नव्यता के
गठबंधन के
मूल्य
स्थापित करती हुई
या संस्कृति
के चक्र की
सशक्त कड़ी है
भारतीय
परम्परा से
आवृत्त लोक
एवं जनजातीय कलाओं
और साहित्य का
अध्ययन और
संरक्षण
हमारी सांस्कृतिक
धरोहर को
जीवित रखने का
महत्वपूर्ण
माध्यम है। ये
कलाएं और
साहित्य न
केवल हमारी
प्राचीन
परंपराओं और
मान्यताओं को
संजोए हुए हैं, बल्कि
हमारी
सामाजिक
संरचना, आस्था,
और जीवनशैली
का भी
प्रामाणिक
चित्रण करते
हैं। लोक और
जनजातीय कला
एवं साहित्य
ने समय के साथ
अपने आप को
विभिन्न
सामाजिक, धार्मिक
और
सांस्कृतिक
परिवर्तनों
के अनुरूप ढाल
लिया है, फिर
भी इन्होंने
अपनी मौलिकता
और विशिष्टता को
बनाए रखा है।
इनके माध्यम
से हम न केवल
हमारे
पूर्वजों की
बुद्धिमत्ता
और सृजनशीलता
को समझ सकते
हैं, बल्कि
उनके जीवन के
संघर्ष, उत्सव,
और साधारण
जीवन की
सुंदरता को भी
देख सकते हैं।आधुनिकता
और वैश्वीकरण
के दौर में, जब कई
पारंपरिक
कलाएं और
साहित्य
लुप्त होने के
कगार पर हैं, इनका
संरक्षण और
प्रोत्साहन
अत्यंत
आवश्यक हो गया
है। सरकारी, गैर-सरकारी
और सामुदायिक
प्रयासों के
माध्यम से इन
कलाओं और
साहित्य को
पुनर्जीवित
करने और
उन्हें नई
पीढ़ी तक
पहुंचाने के
प्रयास जारी
हैं। डिजिटल
माध्यमों और
शैक्षिक
कार्यक्रमों
के माध्यम से
भी इनकी पहुंच
को व्यापक बनाया
जा सकता है।
7. निष्कर्षत
भारतीय
लोक एवं
जनजातीय कला
और साहित्य
हमारी
सांस्कृतिक
पहचान और
धरोहर का
अभिन्न हिस्सा
हैं। इनका
संरक्षण और
संवर्धन
हमारे समाज की
सांस्कृतिक
समृद्धि को
बनाए रखने में
महत्वपूर्ण
भूमिका
निभाता है। यह
हमारी जिम्मेदारी
है कि हम इन
अमूल्य
धरोहरों को
संजोएं और
अगली पीढ़ी को
इसके महत्व से
परिचित कराएं।
None.
None.
Anand, K. (n.d.). Coomarswamy the Art and Craft of India and Ceylon, Today and Tomorrow
Printer’s and Publication, New Delhi.
Das, A. K. (1987). Living Folk Traditions of India. Publisher. ISBN 8170460220
Gatha (2023). http//www.gatha.Com
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Upadhyay, J.C. (2017). Study in the History of Art. ISSN2581-9089
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